दुनिया में शायद ही ऐसी मौत किसी और अभिनेता को मिली हो जैसी इनको मिली थी। एक फिल्म की शूटिंग करते वक्त इन्हें मृत्यु का सीन करना था। उस सीन में इनकी मृत्यु हो जाती है। और जैसे ही वो सीन पूरा करने के लिए ये ज़मीन पर गिरते हैं, सच में इनके खुद के प्राण निकल जाते हैं। ये गाना तो आपने भी सुना होगा, “मेरे पिया गए रंगून। किया है वहां से टैलीफोन। तुम्हारी याद सताती है। जिया में आग लगाती है।” साल 1949 में आई पतंगा फिल्म का ये गीत निगार सुल्ताना और गोप साहब पर ही फिल्माया गया था। आज उन्हीं गोप साहब का जन्मदिन है जो इस गीत में नज़र आए थे।
ये गीत जितना शानदार है उतने ही शानदार एक्टर थे गोप। 11 अप्रैल 1913 को इनका जन्म हुआ था। इनका पूरा नाम था गोप विशनदास कमलानी। इनके पिता चाहते थे कि ये खूब पढ़ें-लिखें। लेकिन पढ़ाई लिखाई इनके सिर के ऊपर से जाती थी। ये मैट्रिक में फेल हो गए। पर कहते हैं ना कि जिस बच्चे का दिमाग पढ़ाई में नहीं लगता उसका खेलकूद या कला-सांस्कृतिक गतिविधियों में ज़्यादा लगता है। गोप साहब भी ऐसे ही थे। ये स्कूल में होने वाले खेलकूद और ड्रैमेटिक एक्टिविटीज़ में ज़्यादा सक्रिय रहते थे। स्टेज पर नाटक किया करते
स्टेज पर नाटक किया करते थे। एक दिन इनका एक नाटक एक हस्ती ने देख लिया। और फिर क्या था। खुल गया गोप साहब के लिए फिल्मी दुनिया का दरवाज़ा
किस्सा टीवी गोप साहब को ससम्मान याद करते हुए उन्हें नमन करता है। अपने दौर में गोप साहब ने भारतीय फिल्मों में कॉमेडी के क्षेत्र में जो योगदान दिया था वो बेहद खास था