रिपोर्ट राजेश विश्वकर्मा
आज से हजारों साल पहले केला ऐसा नहीं दिखता था जैसा आज हम देखते हैं। उस समय केले का फल छोटा, बहुत कम गूदा और बहुत सारे बीजों वाला होता था। किसी मनुष्य ने भोजन की खोज में इस फल को देखा। उसने महसूस किया कि इसका स्वाद तो मीठा है लेकिन इसमें इतने सारे बीज और छोटा आकार इसे खाने के लिए असुविधाजनक बनाते हैं। धीरे-धीरे मनुष्यों ने केले को अपनी आवश्यकताओं के अनुसार बदलना शुरू किया। उन्होंने उन किस्मों को उगाना शुरू किया जिनमें कम बीज होते थे। समय के साथ, अन्य किस्में जो मनुष्य के लिए उपयोगी नहीं थीं, समाप्त हो गईं क्योंकि वे ‘सर्वाइवल ऑफ द फिटेस्ट’ सिद्धांत के अनुसार नहीं टिक पाईं। जब केले का सही आकार और स्वाद प्राप्त हो गया, तो उसकी तनों से खेती शुरू हो गई। धीरे-धीरे केले के पेड़ ने भी देखा कि उसकी आने वाली पीढ़ियाँ बिना प्रजनन के बढ़ रही हैं, और समय के साथ केले में बीज भी लगभग समाप्त हो गए। इसे प्राकृतिक चयन कहा जा सकता है। आज बाजार में जो केले मिलते हैं, वे बिना बीज वाले होते हैं और तनों से उगाए जाते हैं। यदि भविष्य में कभी धरती से मनुष्य समाप्त हो जाए, तो केले भी समाप्त हो जाएंगे क्योंकि वे अब प्रजनन करना भूल चुके हैं, और मनुष्य के बिना उन्हें कौन लगाएगा?ऐसा केवल केले के साथ ही नहीं, बल्कि लगभग सभी प्राकृतिक चीजों के साथ हुआ है। मनुष्य ने अपनी सुविधा के अनुसार प्रकृति को बदल दिया है। जो जीव और पेड़ मनुष्य की आवश्यकताओं के अनुसार चले, वे ही जीवित रहे। एक समय था जब धरती पर विशाल जानवर पाए जाते थे। उस समय के आदिमानव उनके सामने शक्तिहीन थे। तब बुद्धि ने काम किया। बड़े जानवरों को मारने पर उन्हें एक बार मेहनत करनी पड़ती थी और फिर महीनों का खाना मिल जाता था। इसके साथ ही बड़े जानवरों के समाप्त होने से दूसरे जानवर भी छोटे जानवरों को खाने के लिए मजबूर हो गए। इससे छोटे जानवरों की संख्या भी घटने लगी और वे अंततः विलुप्त हो गए। केवल वे ही जीवित रह पाए जिनसे मनुष्य निपटने में सक्षम था। अफ्रीका महाद्वीप में सबसे अधिक जानवर इसलिए बचे क्योंकि वहां होमो सैपियन्स और जानवरों का साथ-साथ विकास हुआ। जिससे जानवरों को मनुष्यों के अनुसार ढलने की समझ थी। वहीं ऑस्ट्रेलिया जैसे महाद्वीप में जब होमो सैपियन्स पहुंचे, तो वहां के बड़े कंगारुओं का कोई मुकाबला नहीं था। कुछ ही वर्षों में वे समाप्त हो गए।मनुष्य इस प्रकृति का सबसे निरीह और असहाय प्राणी है। ठंड में मनुष्य ठंड से, गर्मी में गर्मी से और बारिश में बारिश से मरने की संभावना रहती है। इंसान के बच्चे को बड़ा होने में सबसे अधिक समय लगता है। दो पैरों पर चलने की वजह से उसका संतुलन भी अच्छा नहीं होता। लेकिन समय के साथ इंसान ने अपनी बुद्धि का उपयोग करके प्रकृति को अपने अनुकूल बना लिया है। अब वह अंतरिक्ष को भी अपने अनुसार बदलने की कोशिश कर रहा है।